दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि आपसी सहमति के आधार पर तलाक के समय बनी सहमति को पति या पत्नी में से किसी के द्वारा एकपक्षीय ढंग से किसी आधार के बिना वापस लेना मानसिक क्रूरता के समान है।
न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ ने एक पति द्वारा दाखिल किए गए मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही। पति ने यह मामला निचली अदालत के उस आदेश के विरूद्ध दायर किया है जिसमें इस दंपत्ति को आपसी सहमति के आधार पर अलग होने की अनुमति दी गयी है। दोनों का विवाह मार्च 2004 में हुआ था।
पीठ ने ध्यान दिलाया है कि प्रतिवादी सहमति करार की शर्तों का पालन करने के लिए सदैव तैयार थी और उसने गुजारा भत्ते के अपने दावें को स्वैच्छा से छोड़ दिया। महिला ने करार में की गयी प्रतिबद्धताओं का पालन किया।
अदालत ने कहा, लिहाजा, अपील कर्ता द्वारा किसी समुचित या तार्किक कारण के बिना सहमति को एकपक्षीय ढंग से वापस लिये जाने से इस परिस्थिति में उसके साथ की गयी क्रूरता में वृद्धि होती है। निचली अदालत ने इस साल जून में तलाक संबंधी महिला की याचिका को कू्ररता के आधार पर मंजूरी दी थी।
निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने उच्च न्यायालय की शरण ली और क्रूरता के आरोप से इंकार किया। पति का दावा है कि यह मुद्दा बच्चों की देखभाल, उसके ससुराल पक्ष के हस्तक्षेप, महिला के बार बार अपने अभिभावकों के साथ रहने की मांग जैसे मामूली बातों का है।
हालांकि उच्च न्यायालय ने पति के दावों को नकार दिया। पति-पति दोनों ही अध्यापक हैं तथा 2009 से ही अलग अलग रह रहे हैं। (भाषा)