नई दिल्ली । 8 नवम्बर 2016 को जब प्रधानमंत्री मोदी देश को सम्बोधित करने के लिए सामने आए तो लोगों को लगा की पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई सख़्त कार्यवाही होने वाली है। लेकिन ऐसा नही हुआ। बल्कि जनता की गाढ़ी कमाई के ऊपर सख़्त फ़ैसला ले लिया गया। 1000 और 500 के नोट बंद कर दिए गए और पूरे देश को बैंक और ATM की लाइन में खड़ा होने के लिए मजबूर कर दिया गया।
उस समय लोगों को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा यह सबको पता है। लेकिन मोदी सरकार ने कभी भी नोट बंदी को असफल नही माना। उन्होंने कई बार अपने गोल पोस्ट बदले। कभी इसे कालेधन के ख़िलाफ़ मास्टर स्ट्रोक कहा तो कभी कैशलेस इकॉनमी के लिए उठाया गया क़दम। इसी बीच उस समय नोट बंदी की आलोचना करने वाले पूर्व आरबीआई गवर्नर रघराम राजन ने एक बार फिर नोट बंदी पर निशाना साधा है।
आईएएनएस (IANS) के हवाले से न्यूज़ 18 हिंदी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक रघराम राजन ने नोट बंदी को देश की विकास दर में आयी कमी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। इसके अलावा उन्होंने तबाह हो गए रोज़गारों के लिए भी नोट बंदी की आलोचना की है। उन्होंने कहा,’ मुझे संदेह है कि विकास दर में गिरावट का कारण इसका (नोटबंदी) प्रभाव है। इसका प्रभाव अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर भी था, जिसे तुरंत पकड़ा नहीं जा सका है, जैसा कि हम देख रहे हैं। व्यापार बंद हो रहे हैं, क्योंकि वे इससे उबर नहीं सके।’
उन्होंने अपने कार्यकाल में इसे मंज़ूरी देने के सवाल पर कहा,’ इसका सरल जबाव इस मंशा से प्रकट होता है कि मुझे लगता है कि सरकार ने उस समय हमसे हमारे विचार पूछे थे.. हमने उन्हें जबाव दे दिया था। लेकिन हमने इस फैसले को बहुत ही कठिन समझा था, मैं नहीं समझता था कि इससे वांछित लाभ होगा और इसकी लागत भी काफी अधिक होने वाली थी।’ जीएसटी पर उन्होंने कहा की अगर इसे सही तैयारी के साथ लागू किया जाता तो और बेहतर परिणाम सामने आते।