वौइस् हिंदी नेटवर्क | देश में नोटबंदी के दूरगामी परिणामो को लेकर काफी चर्चा हो रही है. कुछ अर्थशास्त्री नोटबंदी के फैसले को देश हित में बताते हुए तर्क दे रहे है की इससे देश के गरीबो को उनका हक़ मिलेगा और सरकार को विकास करने के लिए पैसा. वही कुछ अर्थशास्त्री इस कदम के विरोध में बोलते हुए कहते है की इससे देश की अर्थव्यवस्था को बेहद गंभीर नुक्सान झेलने पड़ेंगे.
नोटबंदी के बाद इसका देश पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन तो भविष्य की गर्भ में छिपा है लेकिन हम आज आपको बताते है की क्या दुनिया में नोटबंदी का यह अकेला निर्णय है या इससे पहले भी किसी देश में ऐसे निर्णय लिए जा चुके है और इनका देश पर क्या प्रभाव पड़ा.
सन 1991 में सोवियत रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने 50 और 100 रूबल को वापिस लेने का फैसला किया. सरकार ने दोनों करेंसी को रद्द घोषित कर दिया. मिखाइल का यह कदम भी कालेधन को नियंत्रित करने के लिए लिया गया था. मिखाइल के इस फैसले के बाद रूस में महंगाई बढ़ गयी और वहां की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी. सोवियत रूस के पतन का कारण भी मिखाइल के इस निर्णय को माना जाता है.
उत्तर कोरिया में साल 2010 को वहां के तत्कालीन प्रशासक किम जोंग ने अपने पुराने 100 के नोट से दो जीरो हटा दी. इससे उत्तर कोरिया का 100 का नोट केवल 1 रूपए का बनकर रह गया. किम जोंग की भी सोच यही थी की उनके इस कदम से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा. लेकिन किम जोंग के इस कदम से वहां की अर्थव्यवस्था चोपट हो गयी. इसकी वजह से वहां के वित्त प्रमुख को फंसी दे दी गयी.
नाइजीरिया में भी साल 1984 में इसी तरह का कदम उठाया गया. वहां के तत्कालीन सैन्य शासक मुहम्मद बुहारी ने देश के सभी नोट को बंद करते हुए , नए कलर में नयी करेंसी जारी करने का आदेश दिया. बुहारी के इस निर्णय से देश में लम्बी लम्बी लाइन लगनी शुरू हुई. लेकिन इस कदम से नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गयी. अब सवाल यही है की क्या भारत में हालात इन सब देशो से कुछ अलग होंगे? देखते है…