देश के प्रमुख उद्योग मंडल एसोचेम ने देश में आ रहे निवेश की परियोजनाओं के तौर पर मूर्त रूप लेने की धीमी रफ्तार पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि इससे ‘मेक इन इंडिया’ की उम्मीदों पर भी असर पड़ रहा है।
देश के प्रमुख उद्योग मंडल एसोचेम ने देश में आ रहे निवेश की परियोजनाओं के तौर पर मूर्त रूप लेने की धीमी रफ्तार पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि इससे ‘मेक इन इंडिया’ की उम्मीदों पर भी असर पड़ रहा है। एसोचेम के राष्ट्रीय महासचिव डीएस रावत ने एक बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार ने भारत को दुनिया का प्रमुख निर्माण हब बनाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ की परिकल्पना पेश की है। लेकिन देश में आने वाले निवेश के परियोजनाओं के तौर पर अमल में आने की मौजूदा धीमी रफ्तार के कारण इस परिकल्पना को लेकर जताई गई उम्मीदें अपनी चमक खो रही हैं।
उन्होंने कहा- देश में निवेश की घोषणाएं तो हो रही हैं लेकिन वे जमीन पर नहीं उतर रही हैं। इसके अलावा जो निवेश हो चुका है, उससे जुड़ी परियोजनाओं के मुकम्मल होने में लग रही देर के कारण लागत में दिन-ब-दिन बढ़ोतरी से निवेशकों का विश्वास और इरादा दोनों ही कमजोर हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को विलंबित परियोजनाओं को जल्द से जल्द पूरा कराने के लिए पुख्ता रणनीति बनानी चाहिए।
रावत ने देश में निवेश परियोजनाओं की मौजूदा स्थिति को दर्शाती एसोचेम की एक ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि राजस्थान 68.4 फीसद, हरियाणा 67.5 फीसद, बिहार 62.8 फीसद, असम 62.4 फीसद और उत्तर प्रदेश 61.7 फीसद में सबसे ज्यादा निवेश परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। उन्होंने कहा कि सितंबर 2015 तक देश में करीब 14 लाख 70 हजार करोड़ रुपए निवेश की घोषणा की गई थी लेकिन उसमें से सिर्फ 11.2 फीसद निवेश ही प्राप्त हो सका है।
रावत ने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ की परिकल्पना पेश करते समय यह इरादा जाहिर किया गया था कि इसके जरिए आने वाले सालों में 10 करोड़ युवाओं को रोजगार दिया जाएगा। इसके लिए इस परिकल्पना को जमीन पर उतारने के मकसद से बुनियादी स्तर पर काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि देश में क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों से गुजर रही 1160 निर्माण परियोजनाओं में से 422 की या तो लागत बढ़ चुकी है या फिर उनके पूर्ण होने का अनुमानित समय बीत चुका है या वे इन दोनों ही दिक्कतों का शिकार हैं। ऐसी परियोजनाओं का आकार 8.76 लाख करोड़ है। इनमें से 79 परियोजनाएं तो निर्धारित अवधि से 50 या उससे ज्यादा महीनों की देरी से चल रही हैं।
एसोचेम महासचिव ने कहा कि मेक इन इंडिया को वास्तविकता बनाने के लिए सरकार को रुकी हुई परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए प्राधिकारी के साथ निवेशक स्तर तक लक्ष्यबद्ध कार्ययोजना तैयार करनी होगी। रावत ने कहा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रीयल एस्टेट से जुड़ी हजारों करोड़ रुपए की परियोजनाएं अधर में लटकी हैं। इन्हें जल्द पूरा करने के लिए राज्य के साथ केंद्र से भी सहयोग की जरूरत है। उन्होंने कहा कि परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी से अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि हर निवेश से आर्थिक विकास में योगदान मिलता है। (Jansatta)