गणतंत्र दिवस पर कृषि क़ानूनों के विरोध में निकाली ट्रैक्टर परेड के बाद हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन में टूट होती दिखाई दे रही है। बुधवार को किसान आंदोलन के साथ जुड़े 2 संगठनों ने आंदोलन खत्म करने की घोषणा की है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन और भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने अपना धरना समाप्त करने का ऐलान कर दिया।
भारतीय किसान यूनियन (भानु) के अध्यक्ष ठाकुर भानू प्रताप सिंह ने कहा है कि कल दिल्ली में जो कुछ भी हुआ, उससे वो बहुत आहत हैं और 58 दिनों के बाद अपने आंदोलन को समाप्त कर रहे हैं। ठाकुर भानु प्रताप सिंह ने चिल्ला बॉर्डर से आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की है।
I am deeply pained by whatever happened in Delhi yesterday and ending our 58-day protest: Thakur Bhanu Pratap Singh, president of Bharatiya Kisan Union (Bhanu) at Chilla border pic.twitter.com/5WNdxM9Iqo
— ANI UP (@ANINewsUP) January 27, 2021
उन्होने कहा, कल दिल्ली में जो कुछ भी हुआ उससे वह बहुत परेशान हैं और अपने संगठन और अपने लोगों को ऐसे नेताओं और ऐसे संगठनों से अलग रखते हैं। उनका कहना है कि वह शांतिपूर्वक तरीके से धरना प्रदर्शन कर रहे थे। उन्हें किसी संगठन के लोगों की कोई जरूरत नहीं है। जिन्होंने तोड़फोड़ की है और जिन नेताओं ने अपने किसानों को नहीं संभाला वैसे नेताओं और ऐसे संगठनों से वह कोई वास्ता नहीं रखना चाहते हैं।
I have nothing to do with the protest which is being led by them and over here being represented by Rakesh Tikait on their behalf: Sardar VM Singh, Rashtriya Kisan Mazdoor Sangathan https://t.co/CYKZoH9y4y
— ANI (@ANI) January 27, 2021
इसके अलावा राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वी.एम. सिंह ने कहा कि हिंसा करने वालों पर कार्रवाई हो। वी.एम. सिंह ने कहा कि हिन्दुस्तान का झंडा, गरिमा, मर्यादा सबकी है. उस मर्यादा को अगर भंग किया है, भंग करने वाले गलत हैं और जिन्होंने भंग करने दिया वो भी गलत हैं। ITO में एक साथी शहीद भी हो गया। जो लेकर गया या जिसने उकसाया उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
इन दोनों संगठनों के आंदोलन खत्म किए जाने से किसान आंदोलन को क्या फर्क पड़ेगा, इसको लेकर राकेश टिकैत का कहना है कि वो (भाकियू का भानु गुट) तो आंदोलन का हिस्सा थे ही नहीं तो उनके आने या जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। राकेश टिकैत ने कहा है कि सिंघू बॉर्डर पर जिन 10 किसान संगठन आंदोलन का हिस्सा हैं, उनमें ये दोनों संगठन शामिल ही नहीं, इसलिए उनके ना रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।