नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने सवर्ण आरक्षण विधेयक को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि इस फैसले के गंभीर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पड़ेंगे।
अमर्त्य सेन ने यह भी कहा कि मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के शासनकाल में हुई उच्च आर्थिक वृद्धि को कायम तो रखा, लेकिन उसे नौकरियों के सृजन, गरीबी के उन्मूलन और सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य तथा शिक्षा में नहीं बदला जा सका। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों एवं शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के कदम पर उन्होंने कहा, ‘उच्च जाति वाले कम आय के लोगों के लिए आरक्षण एक अलग समस्या है।’
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने बुधवार को सवर्ण आरक्षण विधेयक को राज्य सभा में पेश किया था और यहां से भी यह पारित हो गया है। इससे पहले मंगलवार को लंबी बहस के बाद लोकसभा में यह विधेयक पारित हो गया था। तब इसके पक्ष में 323 जबकि विरोध में तीन वोट पड़े थे।

उन्होंने समाचार एजेंसी ‘पीटीआई’ से कहा, ‘अगर सारी आबादी को आरक्षण के दायरे में लाया जाता है तो यह आरक्षण खत्म करना होगा।’ सेन ने कहा, ‘अंततोगत्वा यह एक अव्यवस्थित सोच है, लेकिन इस अव्यवस्थित सोच के गंभीर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं जो गंभीर सवाल खड़े करती है।’ प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा कि मोदी सरकार उसके सत्ता में आने से पहले अर्जित आर्थिक वृद्धि को कायम रखने में सफल रही।
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह सकते हैं कि ‘हां हमने इसे जारी रखा है।’ भारत के आर्थिक विकास में बड़ी कमी नहीं आई है।’ सेन ने कहा कि लेकिन रोजगार निर्माण, असमानता को कम करने, गरीबी उन्मूलन और सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा के संदर्भ में उक्त आर्थिक विकास का लाभ हासिल नहीं किया जा सका। उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी के क्रियान्वयन के तरीके की भी आलोचना की।
सेन ने कहा, ‘हमें यह कहने के लिए चुनावी सफलता या विफलता को सामने नहीं रखना चाहिए कि नोटबंदी बहुत नकारात्मक थी और खराब आर्थिक नीति थी और जिस तरह से जीएसटी को लागू किया गया, वह भी बहुत खराब रहा।’ जब अर्थशास्त्री से पूछा गया कि क्या इन दोनों वजहों से भाजपा को हाल ही में पांच विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा तो उन्होंने कहा कि इसके लिए चुनावी अध्ययन की जरूरत है जो उन्होंने नहीं किया है।