सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने हिंदुत्व जजमेंट मामले में टिपण्णी करते हुए चुनावों में धर्म के इस्तेमाल की इजाजत देने से इंकार करते हुए कहा कि कोई धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकता और धर्म को राजनैतिक प्रक्रिया से दूर रखा जाना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया धर्मनिरपेक्ष होती है और उसमें किसी धर्म को नहीं मिलाया जा सकता. चुनाव और धर्म दो अलग-अलग चीजें है उनको साथ-साथ नहीं जोड़ा जा सकता. साथ ही कोर्ट ने सवाल करते हुए पूछा कि अगर उम्मीदवार और वोटर एक ही धर्म के हों और उस आधार पर वोट मांगा जाए तो क्या वो गलत है ? कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर उम्मीदवार और वोटर अलग-अलग धर्म के हों और उम्मीदवार इस आधार पर वोट मांगे कि वोटर्स के कौम की रहनुमाई ठीक से नहीं हो रही तो क्या वो सही है ?
नारायण सिंह बनाम सुंदरलाल पटवा के मामले पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की बेच ने कहा कि 1995 के जजमेंट को बने रहने देना चाहिए. चीफ जस्टिस ने कहा कि पटवा का केस ही देखें तो वे जैन समुदाय से हैं और कोई उनके लिए कहे कि वे जैन होने के बावजूद राम मंदिर बनाने में मदद करेंगे तो यह प्रत्याशी नहीं बल्कि धर्म के आधार पर वोट मांगना होगा.
कोर्ट ने इस मामलें में केद्र सरकार को फिलहाल पार्टी बनाने से इनकार करते हुए कहा कि यह एक चुनाव याचिका का मामला है, जो कि सीधे चुनाव आयोग से जुड़ा है. इसमें केंद्र सरकार को पार्टी नहीं बनाया जा सकता.