26 साल की मुस्लिम ब्यूटी क्वीन, अभिनेत्री और टीवी प्रेज़ेंटर नीलोफ़ा के ट्विटर पर 14 लाख और फ़ेसबुक पर 22 लाख फ़ॉलोअर हैं.
वह कुशल उद्यमी भी हैं और अपने परिवार की फ़ैशन कंपनी ‘नीलोफ़र हिजाब’ की ब्रांड एम्बेसेडर भी हैं. सिर्फ़ एक साल में ये कंपनी मलेशिया में हेडस्कार्फ़ का सबसे बड़ा ब्रांड बन गई है और अब निर्यात के लिए नए बाज़ारों पर उसकी नज़र है.

मलेशिया की 60 फ़ीसदी आबादी मुस्लिम है और यह अकेला ऐसा देश नहीं है जहां मुसलमान महिलाओं के बीच हिजाब की मांग बढ़ी है. दुनिया भर में हिजाब का बाज़ार 2014 में 230 अरब डॉलर था जिसके 2020 में 327 अरब डॉलर हो जाने की संभावना है.
हेडस्कार्फ़ या हिजाब की मांग बढ़ रही है क्योंकि ज़्यादा मुसलमान महिलाएं अपने सिर को ढकना चाहती हैं.
अन्य मुस्लिम-बाहुल्य देशों में भी महिलाएं हिजाब या हेडस्कार्फ़ पहनती हैं, क्योंकि कुरान में महिलाओं और पुरुषों दोनों को हिदायत है कि ‘सिर ढकें और शालीन रहें.’ दुशाले से एक धार्मिक संदेश तो जाता ही है, यह फ़ैशन की सामग्री भी बन गया है. हिजाब फ़ैशन की बढ़ती मांग ने इसे एक तेजी से बढ़ता उद्योग भी बना दिया है.
नीलोफ़र के किसी भी स्कार्फ़ की कीमत 100 रिन्गिट (24 पाउंड) से ज़्यादा नहीं है. इनकी बिक्री पिछले साल 5 करोड़ रिन्गिट (1.18 करोड़ डॉलर) तक पहुंच गई है जो कंपनी के लक्ष्य से दोगुना है.

कंपनी अपने विशेष स्टोर्स और देश भर में फैले 700 डिस्ट्रीब्यूटर्स के नेटवर्क के ज़रिए इन्हें बेचती है. ये सामान ऑनलाइन भी बिकता है और दुनिया भर में कई जगहों पर पहुंचता है.
सिंगापुर, ब्रूनेई, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स और अमरीका में डिस्ट्रीब्यूटरों के ज़रिए नीलोफ़र का लक्ष्य एक वैश्विक ब्रांड बनने का है.
नीलोफ़ा की 30 वर्षीय बहन नूर नबीला नीलोफ़र ब्रांड को चलाने वाले ग्रुप एनएच प्राइमा इंटरनेशनल की प्रबंध निदेशक हैं. वह कहती हैं, “जब हमें बाज़ार से इतनी शानदार प्रतिक्रिया मिली तो हम इस पर यकीन नहीं कर पाए.”
स्टाइलिश हेडस्कार्फ़ पहनने वाली उनकी मूल्यवान उपभोक्ताओं के बीच ये हेडस्कार्फ़ हिजाबिस्ता के नाम से मशहूर हो गया है.

इस मांग में वृद्धि की वजह मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के साथ ही दुनिया भर में मुस्लिम महिलाओं के पारंपरिक कपड़े पहनने का बढ़ता चलन है. यह बदलाव कोई 30 साल पहले शुरू हुआ था जब बहुत से देशों में धर्म की ज़्यादा रूढ़िवादी ढंग से व्याख्या की जाने लगी.
इस्लामिक फ़ैशन डिज़ाइन परिषद की आलिया ख़ान मानती हैं, “यह अपने मूल्यों की ओर लौटना है.”
इस परिषद में करीब 5,000 सदस्य हैं जिनमें से एक तिहाई 40 देशों के डिज़ाइनर हैं. आलिया कहती हैं, “शालीन फ़ैशन की मांग बहुत ज़्यादा है.”
तुर्की मुस्लिम फ़ैशन का सबसे बड़ा बाज़ार है. इंडोनेशिया का बाज़ार भी तेज़ी से बढ़ रहा है और इंडोनेशिया इस उद्योग में दुनियाभर में शीर्ष पर पहुंचना चाहता है.

पेरिस में प्रशिक्षित डियान पेलांगी के 25 लाख इंस्टाग्राम फॉलोअर्स हैं. वह शालीन फ़ैशन में इंडोनेशिया की सबसे प्रमुख डिज़ाइनर हैं और हाल ही में ब्रिटेन-स्थित मैग़ज़ीन बिज़नेस ऑफ़ फ़ैशन ने उनका नाम फ़ैशन की दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में डाला है.
उनके इंडोनेशिया में 14 और मलेशिया में एक बिक्री केंद्र है.
पश्चिमी देशों में भी, जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, हिजाब पहनने वाली महिलाएं ज़्यादा दिखने लगी हैं.
सितंबर में ब्रितानी मॉडल मारिया इदरिसी दुनिया की ऐसी पहली महिला बन गईं जो दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कपड़ों के खुदरा विक्रेता एच एंड एम के विज्ञापन में हिजाब पहनकर नज़र आईं.

इस साल के लंदन फ़ैशन वीक में मलेशिया के कपड़ों के ब्रांड मिमपिकिता का संचालन करने वाली तीन बहनों का पहला शो हुआ. कहा जा रहा है कि वे शो में प्रदर्शित अपने कपड़ों से ज़्यादा अपने हिजाबों की वजह से चर्चा में आईं.
पश्चिमी डिज़ाइनरों ने हमेशा ही मुस्लिम महिलाओं के लिए फ़ैशन में रुचि दिखाई है. 2014 में डीकेएनवाई ने एक रमज़ान कलेक्शन जारी किया था.
अन्य बड़े पश्चिमी ब्रांड भी यह राह पकड़ रहे हैं. टॉमी हिलफ़िगर और मैंगो ने रमज़ान के दौरान मुस्लिमों के ख़ास कपड़े बेचे और जापानी ब्रांड यूनिक्लो ने ब्रितानी डिज़ाइनर हाना ताजिमा के साथ शालीन फ़ैशन की एक श्रृंखला पर काम किया जिसमें हिजाब के साथ केबाया भी शामिल था- जो एक तरह का पारंपरिक वस्त्र है.
ऑस्ट्रेलियन ब्लॉगर और फ़ैशन डिज़ाइनर ज़ुल्फ़िये तुफ़ा ने नवंबर के विश्व इस्लामिक आर्थिक फ़ोरम में इस्लामिक फ़ैशन के एक पैनल से कहा, “स्टाइल हर कोई चाहता है.”
उनका कहना था, “हो सकता है कि वह केवल इसलिए ऐसी चीज़ न लें क्योंकि वो ‘फ़ैशन में’ है लेकिन वह चलन के साथ बने रहना चाहते हैं. इससे इस बात पर असर पड़ता है कि उन्हें कैसे देखा जाता है, विशेषकर पश्चिम में.”
27 साल की मलेशिया की विवी यूसुफ़ ने दो साल पहले अपने बच्चे को जन्म देने के बाद हेडस्कार्फ़ पहनना शुरू किया. सामान्यतः जीवन के इस मोड़ पर ही महिलाएं बदलाव का फ़ैसला लेती हैं.
वह जिस तरह के स्टाइलिश स्कार्फ़ पहनना चाहती थीं जब वैसे नहीं मिले तो उन्होंने खुद अपना डिज़ाइन करने का फ़ैसला किया.
इसमें उन्होंने उच्च गुणवत्ता के कपड़े और समकालीन डिज़ाइनों पर ध्यान केंद्रित किया ताकि पेशेवर महिलाओं को वह पसंद आ सकें, गैर-मुसलमानों को भी.
उन्होंने अपने ब्रांड का नाम डक रखा, जो उनके हाईस्कूल के दोस्तों के ग्रुप का नाम था. यह ब्रांड मई, 2014 में लॉंच हुआ था.

जैसे ही उनके नवीनतम डिज़ाइन ऑनलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध हुए महिलाएं उन्हें ख़रीदने के लिए लाइन लगाने लगीं और वे हाथोंहाथ बिक गए.
नूर नाबिला, जो खुद स्कार्फ़ नहीं पहनतीं, अब मलेशिया, सिंगापुर और ब्रूनेई से बाहर बाज़ार देख रही हैं और नीलोफ़र को दुनिया का एक नंबर का हिजाब ब्रांड बनाने में जुटी हैं.
(bbc-com)