इस भारतीय फौजी से कांपता था पाक, 1947 में रखा था 50 हजार का इनाम
पूरा नाम ब्रिगेडियर —- मोहम्मद उस्मान.
[ अन्य नाम नौशेरा का शेर ]
जन्म 15 जुलाई 1912
जन्म भूमि — आज़मगढ़
मृत्यु — 3 जुलाई 1948
मृत्यु स्थान — जम्मू
अभिभावक —- बहादुर मोहम्मद फ़ारुख (पिता)
कर्म भूमि —- भारत
कर्म-क्षेत्र —- भारतीय सेना में ब्रिगेडियर
पुरस्कार-उपाधि —– महावीर चक्र
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भारत के शहीदों में अजीम शहीद दर्जा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान की हस्ती किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उन्होंने पाकिस्तान सीमा पर देश की हिफाजत करते हुए अपनी जान न्यौछावर की थी। ब्रिगेडियर उसमान नौशेरा घाटी में अपने फौजी टेण्ट के बाहर खड़े थे कि पाकिस्तानी गोलाबारी से एक गोला उनके पास आकर फटा और तीन मई 1948 को अंतिम सांस ली।
परिचय
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मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को आजमगढ़ में हुआ और वह भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान उस 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में जीत हासिल की। मोहम्मद उस्मान भारत की आज़ादी के महज 11 महीने बाद पाकिस्तानी घुसपैठियों से जंग करते हुए शहीद हो गए। यह उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी कैबिनेट के सहयोगी जुलाई 1948 में उनकी राजकीय अंत्येष्टि में शामिल हुए। यह वह सम्मान है जो इसके बाद किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला।
बहादुरी का सफ़र
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उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले में एक गांव है-बीबीपुर। यहीं के थे खान बहादुर मोहम्मद फारुख, जो पुलिस अधिकारी थे और बनारस के कोतवाल भी रहे। उन्हीं के घर की कहानी है। तीन बेटियों के बाद बेटे का जन्म हुआ। नाम रखा गया मोहम्मद उस्मान। बनारस के हरिश्चंद्र भाई स्कूल में पढ़ाई हुई। साहसी इतना कि 12 साल का था कि अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़ा, बचा भी लिया। सेना में जाने का मन बनाया और ब्रिटेन कीरायल मिलिटरी एकेडमी, सैंडहस्ट में चुन लिया गया। भारत से चुने गये 10 कैडेटों में वे एक थे। ब्रिटेन से पढ़ कर आये मोहम्मद उस्मान 23 साल के थे। बलूच रेजीमेंट में नौकरी मिली। इधर भारत-पाक का बंटवारा हो रहा था। पाकिस्तानी नेताओं मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने इस्लाम और मुसलमान होने की दुहाई दी। पाकिस्तानी सेना में शामिल हो जाओ, लालच दिया- नियम तोड़ कर (आउट ऑफ टर्न) पाकिस्तानी सेना का चीफ बना दिया जायेगा। पर, वतनपरस्त उस्मान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बलूच रेजीमेंट बंटवारे में पाकिस्तानी सेना के हिस्से चली गयी। उस्मान डोगरा रेजीमेंट में आ गये।
दोनों देशों में अघोषित लड़ाई चल रही थी। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ करा रहा था। कश्मीर घाटी और जम्मू तक अशांत था। उस्मान पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे. उनकी झनगड़ में तैनाती थी। झनगड़ का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ को कब्जे में ले लिया। लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था – झनगड़ और पुंछ पर कब्जा करना और मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता, नेतृत्व व पराक्रम से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। उन्हें नौशेरा का शेर भी कहा जाता है। तब पाक की सेना के हजार जवान मरे थे और इतने ही घायल हुए थे, जबकि भारत के 102 घायल हुए थे और 36 जवान शहीद हुए थे।
पाकिस्तानी सेना झनगड़ के छिन जाने और अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान थी। उसने घोषणा कर दी कि जो भी उस्मान का सिर कलम कर लायेगा, उसे 50 हजार रुपये दिये जायेंगे। इधर, पाक लगातार झनगड़ पर हमले करता रहा। अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे उस्मान। पाक सेना घात में बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने छह बजे होंगे उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाक सेना ने दाग दिया।
उनके अंतिम शब्द थे – हम तो जा रहे हैं पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाये।
भारतीय सेना में भर्ती
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ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान का जन्म आजमगढ़ जिले के बीबीपुर गांव में हुआ था। इनके पिता खान बहादुर मुहम्मद फारूख पुलिस में आला अधिकारी थे जबकि इनकी मां जमीरून्निसां घरेलू महिला थी। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई हरश्चिंद्र स्कूल वाराणसी तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुई। यह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि प्रखर वक्ता भी थे। अपनी पढ़ाई पूरी कर वह 23 साल की उम्र में वह सैन्य अकादमी चले गए। द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्हें अपनी फौज के साथ लड़ने का मौका मिला और अपनी हिम्मत और बहादुरी के जौहर दिखाए। देश के विभाजन के बाद वह बल्लौच रेजीमेंट से निकल कर गोरखा रेजीमेंट में दाखिल हो गए। हांलाकि पाकिस्तान सरकार ने उन्हें अपने मुल्क में आने पर उन्हें सेना में ऊंचा पद देने का लालच दिया। यहां तक कि मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खा ने भी प्रयास किया लेकिन देश प्रेम उनके अंदर कूट-कूट कर भरा था उन्होंने साफ कह दिया कि जब तक जिंदगी है हिन्दुस्तान की हिफाजत करता रहूंगा। इस पर तिलमिला कर पाकिस्तान सरकार ने इन पर 50 हजार रुपये का इनाम रखा। बंटवारे के बाद सीमा पर पाकिस्तानी दखलअंदाजी जारी थी। उसी दौरान उन्हें 77 पैरा ब्रिगेडियर कमाण्डर बना कर नौशेरवा, पुंछ, राजौरी, मीरपुर, अखनूर, बैरीपत्तन आदि क्षेत्रों की हिफाजत के लिए भेजा गया जहां स्थित काफी गंभीर बनी हुई थी। इन्हें इस बीच कई बाधाओं से गुजरना पड़ा लेकिन तीन महीने के अभियान में वह कामयाब हुए और नौशेरा घाटी को आजाद कराया। ब्रिगेडियर उस्मान को शहादत के बाद दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.मोख्तार अहमद अंसारी के बगल में पूरे सैनिक सम्मान के साथ दफन किया गया। उन्हीं की कुर्बानी का नतीजा है कि आज भी जम्मू-काश्मीर की घाटियां भारत का अभिन्न अंग है।गाजीपुर के लोगों को भी नौशेरा के इस शेर पर आज भी फक्र है। हो भी क्यों न, युसुफपुर के अंसारी खानदान में उनका नानिहाल था। उस्मान की मां जमीरून्निसां युसुफपुर की रहने वाली थीं। उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद हामिद अंसारी शपथ ग्रहण के बाद ब्रिगेडियर की कब्र पर गए।
साभार http://teesrijungnews.com/
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