सऊदी अरब ने UK से किया सैन्य समझौता, खरीदे 48 लड़ाकू विमान

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इस हफ्ते के तीसरे दिन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने मिस्र के दौरे के बाद लन्दन का ऐतिहासिक दौरा शुरू किया था, जहां उन्होने कई ब्रिटिश अधिकारीयों से मुलाक़ात की, ब्रिटिश अधिकारीयों के साथ-साथ क्राउन प्रिंस ने ब्रिटिश पीएम थेरेसा मे और क्वीन एलिजाबेथ से मुलाक़ात की, दोनों देशों ने कई सारे अहम् समझौतों पर हस्ताक्षर किये, दोनों देशों ने एक दुसरे के साथ मजबूत सम्बन्ध रखने के लिए कई अहम् मुद्दों पर हस्ताक्षर किये.

BAE सिस्टम ने अधिकारिक घोषणा की है की “सऊदी क्राउन प्रिंस के अधिकारिक लंदन दौरे के आखिरी दिन ब्रिटिश सरकार ने 48 टाइफून लड़ाकू विमान की खरीद के साथ सऊदी अरब के साथ एक ज्ञापन समझौते पर हस्ताक्षर कर लिए हैं.”

ब्रिटेन के डिफेंस सेक्रेट्री गेविन विलियमसन ने नए कॉन्ट्रैक्ट के बारे में कहा की “ हमने टाइफून लड़ाकू विमानों के कॉन्ट्रैक्ट के साथ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है,यह कदम मिडिल ईस्ट में सुरक्षा बढ़ाएगा और हमारे बेजोड़ एयरोस्पेस क्षेत्र में ब्रिटिश उद्योग और नौकरियों को बढ़ावा देगा.”

बीएई सिस्टम्स ने रॉयल सऊदी वायु सेना (आरएसएएफ) को पुराने अनुबंधों के तहत 72 टाइफून सेनानी जेटस की आपूर्ति की थी,  जिस कॉन्ट्रैक्ट को 2007 में साइन किया गया था.

टेलीग्राफ के मुताबिक, इस नए कॉन्ट्रैक्ट की किमत £ 10 बिलियन से अधिक की है, जो की ब्रिटेन में रक्षा उद्योग को बढ़ावा देगा और BAE सिस्टम टाइफून लड़ाकू विमानों की उत्पादन लाइन को रखने और चलाना के लिए हजारों नौकरियां ब्रिटेन के निवासियों को प्रदान करेगा.

दिसंबर 2017 में, कतर और ब्रिटेन के बीच क़तर के लिए 24 टाइफून लड़ाकू विमानों की आपूर्ति का समझौता हुआ था, जिसकी किमत £ 10बिलियन से अधिक थी और जो सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब घेराबंदी का सामना कर रहा है.

इंडिपेंडेंट के अनुसार, कई ब्रिटिश कार्यकर्ताओं ने सऊदी अरब के साथ नए अनुबंध की आलोचना की और यमन पर चल रहे सऊदी के इस युद्ध को “शर्मनाक” बताया,  आरएसएफ़ए ने यमन पर कई हमलों पर इसके टाइफाइन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया था, जिनमें से कुछ को ब्रिटेन द्वारा आपूर्ति की गई क्लस्टर बम जैसे निषिद्ध हथियारों से भी बाहर किया गया था.

इस सब आलोचना के बावजूद, नए अनुबंध की संभावना किसी भी समस्या के बिना निष्पादित होगा, जैसे कई पिछले अनुबंध हुए थे,  कुछ अरब विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कतर और सऊदी अरब दोनों देशों की भागीदारी का उद्देश्य ब्रिटेन का साथ हासिल करने का है, ना कि इन दोनों देशों की सैन्य क्षमताओं में सुधार लाने का.

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