मुंबई,बीते आठ-दस सालों में खान तिकड़ी बॉलीवुड में जो जहग बनाई है, इंडस्ट्री में कोई और नहीं कर सका है। फिल्म व्यवसाय हो या दमदार किरदार मिलने की; आमिर, सलमान या शाहरुख खान को निर्माता-निर्देशकों ने ही नहीं दर्शकों ने भी प्रमुखता दी है। लेकिन इसी दौर में कुछ अभिनेत्रियां उभरी हैं, जो बिल्कुल खान बंधुओं के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। वह किसी से कमतर नजर नहीं आतीं, न अभिनय में और न व्यवसाय में।
यूं तो, फिल्म जगत हमेशा से पुरुष केंद्रित रहा है। खुद सलमान खान ने हाल ही माना था कि अभिनेत्रियों को अभिनेताओं की तुलना में कम पैसे दिए जाते हैं। बीते दिनों हैरी पॉटर फेम एमा जैक्शन ने यह कहकर चौंका दिया था कि हॉलीवुड तक में महिला कलाकारों से भेदभाव किया जाता है।
लेकिन दुनियाभर में इतना प्रतिकूल माहौल होने के बावजूद बीते छह-आठ सालों में दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनौत जैसी हीरोइनों ने अपने लिए खास जगह बनाई है। इन्होंने साबित किया है कि फिल्में हीरो बगैर खत्म नहीं हो जाती, हीरोइन के दम पर भी चल सकती हैं।
इन हीरोइनों ने किस तरह बॉलीवुड फिल्मों का चेहरा बदला है, किस तरह महिला कलाकारों को स्थापित किया है, किस तरह निर्माता-निर्देशकों में विश्वास जगाया है कि हीरोइन प्रधान फिल्मों भी बनाई जा सकती हैं
दीपिका पादुकोण को बॉलीवुड में डेब्यू किए 8 साल हो चुके हैं। पहली फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में ही उन्होंने साबित कर दिया था कि वह लंबी रेस की खिलाड़ी हैं। पहली ही फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट डेब्यू फिल्मफेयर अवार्ड मिला। हालांकि यह पहले भी होता रहा है, कलाकारों को बेस्ट डेब्यू अवार्ड तो मिलता है, लेकिन इसके बाद वो कहीं खो जाते हैं, लेकिन दीपिका पादुकोण हर फिल्म के बाद निखरती गईं। उन्होंने खुद के लिए अलग जगह बनाई।
दीपिका अपनी पहली ही फिल्म में शाहरुख खान के होने के बावजूद आलोचकों और दर्शकों का ध्यान खींचने में सफल रही थीं। लेकिन आमतौर पर तीनों खानों साथ डेब्यू करने वाली अभिनेत्रियों को गंभीरता नहीं लिया जाता है। दीपिका के साथ भी यही हुआ। उन्हें फिल्में तो ऑफर हो रही थीं, लेकिन फिल्मों में मसाला डालने की भूमिका में। हीरोइन की कमी पूरी करने की भूमिका में, रोमांटिक और सिपंल।
लेकिन दीपिका ने जल्द ही इसे भांप लिया 2007 में ओम शांति ओम के बाद इम्तियाज अली की फिल्म ‘लव आजकल’ (2009) में उन्होंने फिर से खुद को साबित किया। जता दिया कि उनमें अभिनय क्षमता है, और टिकट खिड़की पर दर्शक खींचने की क्षमता भी। आज ‘लव आजकल’ को अगर इम्तियाज, सैफ के लिए कम दीपिका के लिए अधिक याद किया जाता है।
इसके बाद वह कई छोटे-बड़े बजट की फिल्में करती रहीं। निजी जिंदगी में भी रणबीर कपूर से प्यार-तकरार आदि-आदि तरह के भूचाल आते रहे। लेकिन दीपिका ने कभी उलट कर नहीं देखा। साल 2012 में आई उनकी फिल्म ‘कॉकटेल’ ने उन्हें हिन्दी फिल्म जगत की शीर्ष हीरोइनों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया।
इसमें दीपिका आजाद खयालों वाली, शादी से पहले लिव इन में रहने वाली बिंदास लड़की के किरदार में थीं। उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया और 21वीं सदी की युवा लड़कियों का सटीक उदाहरण पेश किया। फिल्म के बाद उनका यह किरदार कई लड़कियों का रोल-मॉडल बन गया।
और यही से दीपिका युग शुरू हो गया। साल 2013 में दीपिका पादुकोण की फिल्मों ने कमाई के झंडे गाड़ दिए। सबसे पहले मल्टीस्टारर ‘रेस 2’ ने 100 करोड़ का आंकड़ा छुआ तो लोगों को लगा संयुक्त प्रयास है। लेकिन ‘ये जवानी है दीवानी’ में सीधी-सादी नैना का किरादार लोगों के दिलों में उतर गया। या यूं कहें दर्शकों को दीपिका से प्यार हो गया। इस फिल्म की दो खूबियां थीं। पहली असल जिंदगी में रणबीर कपूर के काफी करीब आने और फिर ब्रेक-अप होने के बावजूद पर्दे पर कहीं इसका असर नहीं दिखा।
आपको याद होगा शाहिद-करीना, जॉन अब्राहम-बिपाशा का प्यार और अलगाव। ‘ये जवानी है दीवानी’ जैसी कोई मिसाल नहीं दिखती, जिसमें अलगाव के बाद इन जोड़ियों ने साथ में इस तरह का कोई किया काम किया हो। इस शानदार कमेस्ट्री का पूरा श्रेय दीपिका पादुकोण को मिला। दूसरी खूबी दीपिका का अभिनय था। उन्होंने सीधी-सादी नैना के किरदार में जान डाल दी थी। एक भारतीय लड़की कितना मजबूत हो सकती है, इसका शानदार मिसाल पेश किया था। वह प्यार में हारती नहीं, बल्कि हरा देती है।
साल अभी बीता भी नहीं था कि दीपिका ने जबर्दस्त धमाका किया। उनकी फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ ने कमाई के मामले में 400 करोड़ का आंकड़ा पार कर दिया था। और लोगों ने तब दीपिका का लोहा मान लिया जब इसी साल आई फिल्म ‘रामलीला’ में वह लड़ाकू और सीने पर गोली खाने वाली लीला बन कर सामने आईं।
एक ही साल में चार 100 करोड़ कमाने वाली फिल्म की वो पहली हीरोइन बनीं।
दीपिका ने साबित कर दिया कि वे जिस फिल्म में रहेंगी, उसका हिट होना तय है। साल 2014 में आई दीपिका की ‘फाइंडिग फैनी’ ने भले ही कोई खास बिजनेस न किया हो लेकिन ‘हैप्पी न्यू ईयर’ ने वो भी कसर पूरी कर दी।
साल 2015 एक प्रतिष्ठित अखाबर में अपनी तस्वीर पर लिखे कैप्शन के खिलाफ बोलकर अपने साहस का परिचय दिया। आमतौर पर फिल्मी दुनिया के लोग ऐसे मामलों पर बोलने से डरते हैं। फिर इसी साल ‘माई च्वाइस’ नाम के वीडियो ने उन्हें महिलाओं व 21वीं सदी की युवा लड़कियों का नेतृत्वकर्ता बना दिया। वह सहसा कई लड़कियों की रोल मॉडल बन गईं। इसमें उन्होंने शादी से पहले संबंध बनाने और महिला शक्तिकरण की वकालत की थी। हालांकि एक वर्ग ने दीपिका की आलोचना भी की।
इसी कड़ी को मजबूत करती उनकी बीते साल आई फिल्म ‘पीकू’ ने उन्हें पूरी तरह स्थापित कर दिया। ‘तमाशा’ में एक बार फिर उन्होंने अपने दमदार अभिनय का दम दिखाया। इसका खुमार उतरा भी नहीं था कि ‘बाजीराव मस्तानी’ की मोहब्ब्त में बगावत कर जाने वाली ‘मस्तानी’ के किरदार उन्होंने साबित कर दिया कि वह अभिनय ही नहीं बॉक्स ऑफिस की भी क्वीन हैं।
दीपिका के पीकू वाले सह कलाकार इरफान खान ने भी एक बार कहा था कि दीपिका आसानी से ग्लैमरस रोल कर सकती हैं, लेकिन अलग-अलग और चुनौतीपूर्ण रोल करना पसंद करती हैं। वो खुद को उभारना चाहीत हैं। दीपिका की तरह ही इसमें कंगना रनौत का भी हाथ रहा है।
प्रियंका चोपड़ा को फिल्मों में आए 12 साल हो चुके हैं। वे शुरुआत में ‘अंदाज’, ‘मुझसे शादी करोगी’ जैसी हिट फिल्में का हिस्सा रहीं लेकिन 2004 में फिल्म ‘ऐतराज’ में उनके किरदार को खास पसंद किया गया। फिल्म में चालाक, बोल्ड औरत के किरदार के साथ प्रियंका ने पूरा न्याय किया।
यूं तो प्रियंका ने ‘वक्त’, ‘सलाम-ए-इश्क’, ‘डॉन’ जैसी कई हिट फिल्में दीं लेकिन अब तक उन्हें अपने दम पर फिल्म चलाने वाली हीरोइन का खिताब नहीं मिल पाया था। ये संभव हुआ 2008 में आई फिल्म ‘फैशन’ से।
कंगना की तरह ही प्रियंका ने इस फिल्म में जान लगा दी और फिल्मफेयर के साथ नेशनल अवार्ड भी जीता। 2011 में आई फिल्म ‘सात खून माफ’ भले ही ज्यादा चली नहीं लेकिन प्रियंका के सात अवतारों से साबित हो गया कि वे एक वक्त पर कई दमदार रोल निभाने के लायक हैं।
लेकिन वो कौन सी फिल्म थी जिसने प्रियंका को लेकर सबका नजरिया बदल दिया, जानिए अगली स्लाइड में।
2012 में आई फिल्म ‘बर्फी’ ने जैसे उनके बारे में धारणा ही बदल दी। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि प्रियंका मानसिक रूप से कमजोर लड़की की ऐसी बेहतरीन एक्टिंग कर पाएंगी। जितनी तारीफ हीरो रणबीर कपूर को मिली उससे ज्यादा प्रियंका को।
प्रियंका ने बीच-बीच में ‘क्रिश 3’, ‘जंजीर’ जैसी फिल्में की लेकिन इनमें उनका कोई खास रोल नहीं था। फिर 2014 में आई फिल्म ‘मैरी’ कौम में प्रियंका के रोल ने सबकी बोलती बंद कर दी और एक बार फिर साबित हो गया कि फिल्म चलाने के लिए जरूरी नहीं कोई खान या सुपरहिट हीरो भी शामिल हो।
2015 में प्रियंका फिर चर्चा में आईं अपने अंग्रेजी सीरियल ‘क्वांटिको’ को लेकर। प्रियंका ने न सिर्फ भारत में बल्कि हॉलीवुड में भी अपने औऱ भारत के लिए खास जगह बना ली। इसी साल ‘बाजीराव मस्तानी’ में काशीबाई का किरदार निभा कर उन्होंने साबित कर दिया कि चाहे वे फिल्म की मुख्य नायिका न भी हों, एक्टिंग ऐसी करती हैं कि उनपर से नजर न हटे।
प्रियंका की न फैशन में कोई बड़ा हीरो था, न मैरी कॉम में और न बर्फी में कोई खान हीरो। वैसे उनके अलावा भी कोई हीरोइन है, जिसने काफी हद तक अपने लिए यह मुकाम हासिल किया।
ये कोई और नहीं बल्कि अनुष्का शर्मा हैं। 2008 में ‘रब ने बना दी जोड़ी’ से डेब्यू करने वाली अनुष्का ने हिट फिल्में तो दीं लेकिन सिर्फ अकेले दम पर नहीं।
हालांकि ‘बैंड बाजा बारात’ में वेडिंग प्लानर का बिजनेस शुरू करने वाली युवा श्रुति का रोल हो, ‘लेडीज वर्सेस रिकी बहल’ में ठग को पकड़ने के लिए खुद ठग बनी इशिका का रोल या ‘जब तक है जान’ में बाइक चलाती अकीरा का किरदार, अनुष्का को तारीफ मिली।
लेकिन ऐसा नहीं था कि ये फिल्में उनके दम पर हिट हुई हों। ये संभव हो पाया 2015 में आई फिल्म ‘एनएच10’ से। जहां अनुष्का अपने पति की मौत का बदला लेने और खुद की जान बचाने के लिए क्या खूब तरीके से गुंडों की पिटाई करती है।
फिल्म में कोई नामी हीरो नहीं था लेकिन फिल्म भी हिट रही और अनुष्का भी। इस मामले में अभी अनुष्का को और लंबा सफर तय करना है। वैसे एक और हीरोइन है जो अपने दम पर फिल्म हिट भले ही न करा पाती हो लेकिन उनकी मौजूदगी ही काफी होती है।
ये हैं कैटरीना कैफ जो जिस फिल्म में होती हैं उसका हिट होना तय है। न जाने ये कैट का क्या जादू है कि बिना ज्यादा एक्टिंग किए ही ये कमाल हो जाता है। कैट ने कई हिट फिल्में तो दी हैं जैसे ‘मैंने प्यार क्यों किया?’ ‘हमको दिवाना कर गए’, ‘नमस्ते लंडन’, ‘पार्टनर’, ‘वेलकम’ लेकिन इनमें से एक भी ऐसी नहीं थी जिसमें सिर्फ उन्हीं पर नजर रही हो।
उन्होंने पहली बार 2008 में फिल्म ‘रेस’ में निगेटिव किरदार निभाया तो खूब चर्चा हुई। वहीं 2010 में ‘राजनीति’ में एक महिला राजनेता के किरदार में उनकी थोड़ी बहुत तारीफ तो हुई लेकिन फिल्म में अजय देवगन, नाना पाटेकर, मनोज बाजपई जैसे किरदारों से नजर हटाना नामुमकिन था।
इस बीच उन्होंने ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’, ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’, ‘एक था टाइगर’, ‘जब तक है जान’ जैसी कई हिट फिल्में की। इसलिए कैट के लिए यह कहना तो गलत होगा कि वो हीरोइन-आधारित फिल्मों की क्वीन हैं। लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि कैट कई अभिनेताओं, निर्दशकों और निर्माताओं के लिए लकी चार्म रही हैं।
वे जिस फिल्म में होती हैं, उसका हिट होना लगभग तय होता है। सलमान, शाहरुख, आमिर के साथ काम कर चुकी कैट का उनकी फिल्मों में होना फायदा का सौदा रहा। की जरूरत पड़ी यानी उनके न होने से फिल्म जगत पर कुछ तो गहरा असर जरूर पड़ता है।
साभार अमर उजाला